मेरी प्रियतमा
अरी प्रियतमा तुम मेरी कविताओं का श्रंगार हो |
जिससे मन के भाव प्रकट हो ऐसी तुम उदगार हो |
भाव भी हैं क्षमता भी है पर तुम ही नहीं तो रचना क्या ?
तुम तो एक अवलंब हो प्रिय तुम बिन काव्य सृजना क्या ?
तुम ही मेरी जीवन दाई तुम ही मेरा प्यार हो |
अरी प्रियतमा तुम मेरी कविताओं का श्रंगार हो |
जब भाव उठे लेखनी चली और रचना एक नवीन हुई |
तब अंतर मन हो उठा मुदित तुम उर भावो में लीन हुई|
मेरी कविता की सतह पटल मेरे स्वर का संसार हो |
अरी प्रियतमा तुम मेरी कविताओं का श्रंगार हो |
तुमने ही किया है क्रिया शील मेरे इस निष्क्रिय जीवन को |
कविता लिखना सिखलाया है मेटा मेरे सूनेपन को |
जीवन रंग मंच की तुम ही सूत्रधार साकार हो |
अरी प्रियतमा तुम मेरी कविताओं का श्रंगार हो |
माधुर्य है तुममे मधु जैसा सरसित फूलों सी कोमलता |
गाम्भीर्य है तुम में सागर सा लहरों जैसी है चंचलता |
रूकती नहीं कहीं पर भी तुम ऐसी अविरल धार हो |
अरी प्रियतमा तुम मेरी कविताओं का श्रंगार हो |
तुम सर्वोपरि हो सुंदर हो जैसे मस्तक पर बिंदी हो |
तुम ही मेरी प्रियतमा ओ परम प्रिय तुम हिंदी हो |
तुम अभिवयक्ति की भाषा हो तुम शब्दों का भण्डार हो |
अरी प्रियतमा तुम मेरी कविताओं का श्रंगार हो |
जिससे मन के भाव प्रकट हो ऐसी तुम उदगार हो |
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-24/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -33 पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ....
प्रेम के समर्पण के श्रृंगार के रस को लिए शब्द ...
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना ..
“अजेय-असीम{Unlimited Potential}”
ReplyDeleteप्रेम से सराबोर